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जिला दर्शन...जयपुर

                     
०जयपुर को पिंक सिटी(pink city) गुलाबी नगरी भी कहा जाता है!
०जयपुर के लिए पिंक सिटी का प्रयोग सर्वप्रथम स्टैनली रीड नामक अंग्रेज़ ने किया था!
०जयपुर को 'भारत का पेेरिस' कहते है!
०जयपुर को 'भारत का दूसरा वृंदावन' कहा जाता है!
०जयपुर में मंदिरों की अधिकता के कारण जयपुर को "राजस्थान की दूसरी कांसी" भी कहा जाता है!
Note. राजस्थान की पहली कांसी बूंदी जिले को कहा जाता है!
०जयपुर शहर का प्राचीन नाम जयनगर था। जिसका मतलब होता है "city of victory" (जीत का शहर)!
०जयपुर शहर की स्थापना 18 नवंबर 1729 इस्वी में सवाई जय सिंह के द्वारा की गई तथा जयपुर शहर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था!
०जयपुर की तुलना विश्व के कई देशों से की जाती है जैसे_
सुंदरता की दृष्टि से जयपुर की तुलना पेरिस से की जाती है!
आकर्षण की दृष्टि से जयपुर की तुलना बुडापेस्ट से की जाती है!
भव्यता की दृष्टि से जयपुर की तुलना मॉस्को से को जाती है!
०जयपुर का आधुनिक निर्माता सर मिर्जा इस्माइल खा थे! इनको सर की उपाधि अंग्रेजों द्वारा दी गई थी! सर मिर्जा इस्माइल खां जयपुर के अंतिम शासक सवाई मानसिंह द्वितीय के प्रधानमंत्री थे!
०प्रथम कच्छवाहा शासक जिसने सवाई की उपाधि धारण की 'सवाई जयसिंह' इनको यह उपाधि औरंगजेब ने दी थी! इन्हीं सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर बसाया था!
०जयपुर नगर 9 चोकडियो के मध्य, मुख्य 18 सड़कों को आधार मानकर तथा 90 डिग्री कोण पर बसा है!राजस्थान का प्रथम नगर जो व्यवस्थित रूप से बसा है! सड़के समकोण पर काटती है!
०जयपुर को पिंक सिटी भी कहा जाता है,क्योंकि प्रिंस वेल्स अल्बर्ट ने जब जयपुर की यात्रा की तब जयपुर के शासक सवाई रामसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर को गुलाबी रंग से रंगवाया था! वास्तविक रंग पहले गेरू था!

०जयपुर नगर पर कच्छवाहा वंश का शासन रहा और उनकी राजधानियां निम्न प्रकार से रही_
.प्रथम राजधानी_दौसा
.द्वितीय राजधानी_मांची
.तृतीय राजधानी_आमेर
.चतुर्थ राजधानी /अंतिम राजधानी_जयपुर
०जयपुर नगर के आस पास का क्षेत्र को ढूंढाड कहलाता था, इसकी कुछ मान्यताएं है_
1. यहां पर ढांढूं नाम का राक्षस रहता था जिसकी गुफा आज भी गलता जी में है!
2. यहां पर रेत के बड़े-बड़े ढूंढ(टिले) पाए जाते थे!
3. यहां पर ढूंढ नदी बहती थी!
०जयपुर नगर की स्थापना से पहले सवाई जयसिंह ने 1725 इस्वी में आमेर से दूर 'जय निवास महल' अपने निवास के लिए बनवाया था कालांतर में  1729 इस्वी में जय निवास महल के चारों ओर एक नगर बसाया जिसे जयनगर कहा गया बाद में इसी नगर का नाम जयपुर पड़ा!
०जयपुर शहर के परकोटे से अंदर आने के लिए 7 मुख्य दरवाजे बनवाए गए थे_
(1. धुव्र दरवाजा
(2. घाट दरवाजा
(3. न्यू दरवाजा
(4. सांगानेरी दरवाजा
(5. अजमेरी दरवाजा 
(6. चांदपोल दरवाजा
(7. सूरजपोल दरवाजा

०भारतीय भौतिक शास्त्री सी. वी. रमन ने जयपुर को "आइसलैंड ऑफ ग्लोरी" (वैभव का नगर) कहा!
०हेडे की परिक्रमा (छ: कोली परिक्रमा)_यह परिक्रमा जयपुर शहर में आयोजित होती है! यह परिक्रमा पुराने घाट से शुरू होकर गोविंद देव जी के मंदिर तक चलती है!
०गुड़िया संग्रहालय (डॉल म्यूज़ियम)_डॉल म्यूजियम की स्थापना 7 अप्रैल 1979 ईस्वी में जयपुर शहर में की गई! इस म्यूजियम का उद्घाटन तात्कालिक मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा किया गया! इस म्यूजियम में विश्व के सभी देशों की वेशभूषा/संस्कृति को दर्शाने के लिए अलग-अलग यूवतियो की डॉल/गुड़िया रखी गई है!
०30 March 1949 इस्वी को राजस्थान की राजधानी जयपुर को बनाया गया!  पेयजल की सुविधा के आधार पर पी. सत्यनारायण कमेटी की सिफारिश पर जयपुर को राजधानी बनाया गया था!
०राजस्थान में सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर_जयपुर
०राजस्थान में सर्वाधिक जनसंख्या वाला जिला_जयपुर
०राजस्थान में सर्वाधिक जनघनत्व वाला जिला_जयपुर
*उत्तर पश्चिमी रेलवे (n. w. r) का मुख्यालय_जयपुर
०राजस्थान में सबसे प्राचीन जंतुआलय_जयपुर ! जयपुर मैं स्थित जंतुआलय भारत का प्रथम जंतुआलय है,जहां पर घड़ियाल प्रजनन में सफलता प्राप्त हुई है!
०राजस्थान का सबसे प्राचीन चिड़ियाघर_ जयपुर
०राजस्थान की दूसरी काशी_ जयपुर ! जबकि जयपुर की काशी गलता जी को कहते हैं!

०गलता जी (जयपुर)_गलताजी गालव ऋषि की तपोभूमि थी! तथा धार्मिक दृष्टि से गलताजी को 'जयपुर का पुष्कर' भी कहा जाता है!
Note:_राजस्थान में गुलाब की मुख्य रूप से खेती पुष्कर में होती है! जबकि जयपुर में गुलाब की खेती रामगढ़ में होती है, अतः रामगढ़ को प्राचीन काल में 'ढूंढाड का पुष्कर' कहा गया है!
गलता जी (जयपुर) में बंदरों की संख्या अधिक होने के कारण गलता जी को मंकी वैली(monkey velly) भी कहा जाता है!
गलता जी को "उत्तर तोतादरी" कहते हैं, क्योंकि यहां पर राजस्थान की रामानुज/रामानंद संप्रदाय की प्रमुख पीठ है! इस संप्रदाय को दक्षिण भारत में रामानुज तथा उत्तर भारत में रामानंद कहते हैं!
पृथ्वीराज कछवाहा के काल में इस संप्रदाय का संत कृष्णदास पियेहरी गलता जी में आता है, इस समय गलताजी में नाथ संप्रदाय का वर्चस्व था, और नाथ संप्रदाय का प्रमुख संत चतुर्नाथ था! पृथ्वीराज कछवाहा के काल में गलता जी में नाथ संप्रदाय तथा रामानुज संप्रदाय के मध्य शास्त्रार्थ हुआ!
कृष्णदास पियेहरी( रामानुज संप्रदाय)
V/s
चतुर्नाथ(नाथ संप्रदाय)
यह शास्त्रार्थ पृथ्वीराज कछवाहा की अध्यक्षता में हुआ था!
इस शास्त्रार्थ में कृष्णदास पियेहरी की जीत हुई! गलता जी मैं रामानंद पीठ की स्थापना हुई, रामानंद पीठ की स्थापना कृष्णदास पियेहरी द्वारा की गई थी!
गलता जी में वर्ष में एक बार मेला भरता है 'मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा' को यह मेला भरता है!
पृथ्वीराज कछवाहा तथा उनकी पत्नी बालाबाईं ने कृष्णदास से दीक्षा ली और रामानंद संप्रदाय को स्वीकार किया था!

०देवयानी तीर्थ स्थल, सांभर (जयपुर)_यह एक पौराणिक तीर्थ स्थल है, तथा इसे 'तीर्थों की नानी' भी कहते हैं!

०गणेश मंदिर, मोती डूंगरी (जयपुर)_मोती डूंगरी गणेश मंदिर में प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी(भाद्रपद शुक्ल 4) के दिन मेले का आयोजन होता है! तथा मोती डूंगरी के महलों का निर्माण सवाई माधो सिंह द्वितीय ने करवाया!

०शीला देवी का मंदिर, आमेर दुर्ग (जयपुर)_शीला देवी कछवाहा वंश की आराध्य देवी है, इसे अन्नपूर्णा देवी भी कहा जाता है! शीला देवी मंदिर का निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह ने करवाया था! शीला देवी मंदिर में वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है (1).चैत्र नवरात्र तथा (2).आश्विन नवरात्र में !
Note: कछवाहा वंश की कुलदेवी जमुवाय माता है!
मिर्जा राजा मान सिंह 1594 इस्वी में बंगाल अभियान के दौरान ढाका गए थे, उस समय ढाका का शासक केदार कायत था! मानसिंह ने केदार कायत पर कई  आक्रमण किये परंतु मानसिंह केदार कायत  को हरा नहीं पाया क्योंकि केदार कायत के पास शीला देवी की मूर्ति थी,वरदान था कि जब तक इस मूर्ति की पूजा होती रहेगी केदार कायत को कोई हरा नहीं सकता तब मिर्जा राजा ने कुछ पुजारियों को अपनी ओर मिला लिया ओर मूर्ति की पूजा में विघ्नता डाली, जिससे केदार कायत हार गया बाद में यह मूर्ति मानसिंह को दहेज के रूप में प्राप्त हुई! मानसिंह यह मूर्ति आमेर लाते हैं और आमेर दुर्ग में इस मूर्ति को प्रतिष्ठित किया जाता है! शीला देवी माता के मंदिर निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह के द्वारा किया गया तथा इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर के अंतिम शासक सवाई मानसिंह द्वितीय ने करवाया था! शिला माता की मूर्ति काले पत्थर पर बनी हुई है जो कि अष्टभुजा वाली प्रतिमा है।(8 भुजाओं वाली)!

०जमुवाय माता का मंदिर:_ यह मंदिर जमुवा रामगढ़ (जयपुर) में स्थित है।इस मंदिर का निर्माण दुल्हेराय कच्छवाहा द्वारा किया गया!
जमुवाय माता कछवाहा वंश की कुलदेवी है!
यहां पर वर्ष में 2बार मेला भरता है।
० चेत्र नवरात्र  ० अश्विन नवरात्र
Note: कच्छवाहा, भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज थे, अतः यह भगवान राम को अपना पूर्वज मानते थे, कच्छवाहा वंश की स्थापना दूल्हेराय ने की थी! इन्होंने अपनी पहली राजधानी दौसा को बनाया तथा दूसरी राजधानी मांची को बनाया! इन्होंने मांची का नाम बदलकर राम के नाम पर रामगढ़ कर दिया, रामगढ़ में प्राचीन काल में गुलाब की खेती होती थी, इसलिए इसे 'ढूंढाड का पुष्कर' भी कहा जाता है! यहीं पर दूल्हेराय  ने जमुवाय माता का मंदिर बनवाया था, इसी कारण आज यह स्थान जमवारामगढ़ कहलाता है!

०शीतला माता का मंदिर:_ शीलडूंगरी चाकसू, जयपुर
यहां पर शीतला माता की मूर्ति खंडित है! यहां पर खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती है!
इस मंदिर का निर्माण सवाई माधोसिंह प्रथम ने करवाया था!
शीतला माता का मेला शीतला अष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी) को लगता है!
शीतला अष्टमी को खेजड़ी की पूजा की जाती है, साथ ही ठंडा भोजन (1 दिन पहले बना भोजन जिसे बास्योडा कहते हैं) किया जाता है!
चेचक होने पर शीतला माता की पूजा की जाती है!
•शीतला माता के उपनाम:_
• चेचक वाली माता
• महामाई माता
• माता मावडी
• बच्चों की संरक्षिका देवी
• सेंठल माता

०ज्वाला माता का मंदिर:_जोबनेर, जयपुर
यह खंगारोत वंश की कुलदेवी है, खंगारोत वंश की उत्पत्ति कछवाहा से हुई थी, अर्थात यह कच्छवाहा वंश से निकली एक शाखा है, इसकी स्थापना 'राव खंगार' ने जोबनेर में की थी!

०नकटी माता:_ जयभवानीपुरा, जयपुर
यह मंदिर प्रतिहार कालीन महामारू शैली में निर्मित है! इस शैली के मंदिर ऊंचे चबूतरे पर बने होते हैं, ऊपर से यह सपाट होते हैं, साथ ही ध्वजा नहीं होती मुख्यगर्भ में एक ही मूर्ति होती है, उसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक निश्चित मार्ग होता है!

०गोविंद देवजी का मंदिर/राधा गोविंद जी का मंदिर:_जयपुर शहर
गोविंद देव जी कछवाहा वंश के आराध्य देवता है! इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने 1735 में करवाया था। यह मंदिर 'बिना खंभों' का एशिया का सबसे बड़ा मंदिर है! इस मंदिर में 'गौड़ीय संप्रदाय' की प्रमुख पीठ है!  सवाई प्रतापसिंह ने गोविंद देव जी को जयपुर का वास्तविक शासक घोषित किया और स्वयं को उनका दीवान घोषित किया था! गोविंद देव जी का एक और मंदिर वृंदावन में है जिसका निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह ने करवाया था!

०छींक माता का मंदिर:_ जयपुर !

०नृसिंह मंदिर:_आमेर, जयपुर
कृष्णदास पीयहारी द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था, यह मंदिर पृथ्वीराज कच्छवाहा के काल में बनाया गया था!

०वामन देव का मंदिर:_ मनोहरपुर, जयपुर
राजस्थान में वामन देव का एकमात्र मंदिर!

०कल्कि मंदिर:_ जयपुर
निर्माण: सवाई जयसिंह द्वारा
यह मंदिर कलयुग अवतार कल्कि का है, जो एक विष्णु मंदिर है!

०बृहस्पति मंदिर:_ जयपुर
राज्य का एकमात्र बृहस्पति मंदिर है!
यह मंदिर जैसलमेर के पीले पत्थरों से बना हुआ है!
राजस्थान में बृहस्पति का यह एकमात्र मंदिर है, जबकि भारत में बृहस्पति का एकमात्र मंदिर उज्जैन में है!

#जयपुर के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:_
०जयपुर को 'हेरीटेज सिटी, रत्न नगरी, पन्ना नगरी तथा 'रंग श्री का द्वीप' कहा जाता है!
० राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक भ्रमण के लिए जयपुर में आते हैं!
० राजस्थान का प्रथम साइबर थाना जयपुर शहर में खोला गया है!
० जयपुर को गुलाबी रंग से सवाई रामसिंह द्वितीय ने रंगवाया था, अतः इसे गुलाबी नगरी भी कहते हैं!
० राजस्थान का सबसे बड़ा 'वन्य जीव म्यूजियम' जयपुर में स्थित है!
०ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, यह राजस्थान में महिलाओं का प्रथम विश्वविद्यालय है, जो जयपुर में स्थित है!
० राजस्थान का प्रथम 'कैंसर हॉस्पिटल' जयपुर में स्थित है!
० जयपुर जनसंख्या के आधार पर राज्य में प्रथम तथा देश में 11 वा बड़ा नगर है!
० महाराजा लाइब्रेरी:जयपुर स्थित राजस्थान की प्रथम हाइटेक पब्लिक लाइब्रेरी है, इसका निर्माण सवाई माधो सिंह द्वितीय ने करवाया था!
० एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी जयपुर शहर में स्थित है!
० मोम का युद्ध संग्रहालय/ वैक्स वॉर म्यूजियम: यह संग्रहालय जयपुर शहर में स्थित है! जबकि वॉर म्यूजियम जैसलमेर में स्थित है!
० गुड़िया संग्रहालय/ डॉल म्यूजियम: जयपुर में स्थित!
०राजस्थान की प्रथम महिला बास्केटबॉल एकेडमी जयपुर में स्थापित है, यह सवाई मानसिंह स्टेडियम में स्थित है!
० देश का प्रथम ई-सेवा केंद्र जयपुर के दूदू गांव में स्थित है!
० राजस्थान का प्रथम निजी हवाई अड्डा पालड़ी, जयपुर में स्थित है!
० राजस्थान की प्रथम मेट्रो डेयरी बस्सी, जयपुर
० अकबर की मस्जिद:_ आमेर, जयपुर मे
० पारुल शेखावत:_ अयर इंडिया(air India) में पायलट चुनी गई, यह राजस्थान की प्रथम विमान चालक जो जयपुर से है!
० आकांक्षा:_सबसे कम उम्र की महिला कमर्शियल पायलट जो जयपुर से हैं!
० वीणा सहारन:_विमान आई एल-76 को उड़ाने वाली पहली महिला पायलट यह भी जयपुर से है!
० जामा मस्जिद, जयपुर मैं स्थित
० लक्ष्मी नारायण मंदिर, जयपुर मैं स्थित
० पुंडरीक रत्नाकर जी की हवेली,जयपुर मैं स्थित
Note: पुंडरीक विट्ठल मिर्जा राजा मानसिंह का दरबारी कवि था,जबकि पुंडरीक रत्नाकर सवाई जय सिंह के दरबार का एक विद्वान था! सवाई जयसिंह ने हिंदुस्तान का अंतिम अश्वमेघ यज्ञ करवाया था, इस यज्ञ का प्रधान पुरोहित पुंडरीक रत्नाकर था! पुंडरीक रत्नाकर की हवेली जयपुर में बनी हुई है!
०राजस्थान में जरी का काम सर्वाधिक जयपुर में होता है, यह जरी का काम सवाई जयसिंह के काल में आरंभ हुआ था!
० भित्ति चित्रण कला राजस्थान में सबसे पहले आमेर में आयी मिर्जा राजा मानसिंह के समय में!
० लाख का काम सर्वाधिक जयपुर शहर में होता है (राजस्थान में प्रथम स्थान)!
० तमाशा लोकनाट्य:_यह मूलरूप से महाराष्ट्र नाट्य है, यह सवाई प्रतापसिंह के समय जयपुर आया,सवाई प्रतापसिंह ने तमाशा लोकनाट्य के लिए भट्ट परिवार को संरक्षण दिया था!
० चैनपुरा, जयपुर:_यहां पर अत्यधिक औद्योगिक इकाइयां स्थापित है, अतः यहां पर पर्यावरण प्रदूषण अधिक फैला हुआ है, इसलिए चैनपुरा को 'राजस्थान का नरक' कहा जाता है।
० हवामहल:_ जयपुर
निर्माण- सवाई प्रताप सिंह 1799 में जयपुर शहर में
अपनी रानियों को गणगौर दिखाने के लिए इन्होंने हवामहल का निर्माण करवाया!
हवा महल का वास्तुकार- लालचंद उस्ता
हवामहल लाल पत्थरों से निर्मित है, अतः इसे "लाल मंदिर" भी कहते हैं!
हवा महल के लाल पत्थर अलवर से लाए गए थे!
हवा महल में कुल खिड़कियों की संख्या 953 तथा जाली व झरोखों की संख्या 365 है!
हवा महल की सभी खिड़कियां पूर्व दिशा में खुलती है!
हवा महल की आकृति भगवान कृष्ण के मुकुट के समान है! (पिरामिड के समान)
हवामहल के अंदर 1983 मैं एक संग्रहालय स्थापित किया गया जिसे हवामहल संग्रहालय/हवामहल म्यूजियम कहते हैं!
हवामहल पांच मंजिला इमारत है!
हवामहल में दो प्रकार की कला शैली का समन्वय है! 1.राजपूत शैली  2.मुगल शैली
हवा महल की 5 मंजिलें निम्न प्रकार है_
1. शरद मंदिर(प्रथम मंजिल / सबसे नीचे)
2.रतन मंदिर (दूसरी मंजिल)
3.विचित्र मंदिर (तीसरी मंजिल)
4.प्रकाश मंदिर (चौथी मंजिल)
5.हवा मंदिर (पांचवी मंजिल / सबसे ऊपर)
हवामहल शाही गणगौर के लिए प्रसिद्ध है!
Note: प्रसिद्ध गणगौर
1.शाही गणगौर_ जयपुर
2.गुलाबी गणगौर_ नाथद्वारा
3.घिंघा गणगोर_ उदयपुर
4.बिना ईश्वर की गणगौर_ जैसलमेर
पूरे भारत में चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर त्यौहार मनाया जाता है!
० चंद्र पैलेस/सिटी पैलेस:_ जयपुर
निर्माण- सवाई जयसिंह द्वारा(1729 से 1734 के मध्य)
वास्तुकार-विद्याधर भट्टाचार्य अथवा याकूब
० जयगढ़ दुर्ग:_
निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा 1623 में
जयगढ़ दुर्ग  कच्छवाहा राजाओं की आपातकालीन राजधानी थी!
एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण इसी दुर्ग में स्थित है!
जयगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग है जिसे विजयगढ़ी कहते हैं!
जयगढ़ दुर्ग मिर्जा राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया! यह दुर्ग चिल्हे के टिले के चारों ओर बनाया गया था!
० नाहरगढ़ दुर्ग:_
निर्माण-सवाई जयसिंह द्वारा  1734 में !
मराठा आक्रमण से बचने के लिए इस दुर्ग का निर्माण करवाया गया था!
इसे सुदर्शनगढ भी कहा जाता है!
नाहरगढ़ में स्थित 'एक जैसे नौ महल' सवाई माधोसिंह ने बनवाए थे!
० जंतर मंतर:_ जयपुर
जंतर मंतर एक वेधशाला है!
सवाई जयसिंह ने उज्बेकिस्तान के शासक उलूग बेग की वेधशाला से प्रेरणा लेकर भारत में पांच वेधशालाए बनवाई। यह वेधशालाए जंतर मंतर कहलाती है!
सबसे बड़ी वेधशाला/जंतर मंतर जयपुर में है!
जयपुर जंतर मंतर में एक रामयंत्र है जो ऊंचाई मापने के काम आता है!
इसके साथ ही जयपुर जंतर मंतर में एक सम्राटयंत्र है, जो समय बताने का काम करता है, और यह 'विश्व की सबसे बड़ी सौर घड़ी' है!
सवाई जयसिंह द्वारा बनाई गई पांच वेधशालाए निम्न है_
1. दिल्ली
2. जयपुर
3. बनारस
4. उज्जैन
5. मथुरा








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