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जिला दर्शन...... बीकानेर

० बीकानेर मैं राठौड़ वंश ने शासन किया! बीकानेर की राठौड़ वंश की शाखा मारवाड़/जोधपुर से अलग हुई थी!मारवाड़ का राजा राव जोधा था, राव जोधा का जेष्ठ पुत्र राव बिका था, राव बिका अपने पिता राव जोधा की आज्ञा से जांगल प्रदेश में आकर नए राज्य की स्थापना करता है, राव बिका के साथ जांगल प्रदेश में उसका भाई कांदल तथा चाचा बिदा भी साथ में आते हैं!
०राव जोधा के आदेश व करणी माता के आशीर्वाद से राव बिका बीकानेर राज्य की स्थापना करते हैं! बीकानेर राज्य की स्थापना 1465 ईस्वी में हुई! इसकी पहली राजधानी  "कोडमदेसर नगर"थी!



०किवदंती
 कहा यह भी जाता है कि जब राव बिका जांगल प्रदेश की ओर जाता है,तब उसका पिता राव जोधा राव बिका को एक भेरूजी की मूर्ति देता है और कहता है कि यह मूर्ति जहां भी रुक जाए उस स्थान को केंद्र मानकर बीकानेर राज्य की स्थापना करना! आज भी एक भव्य मंदिर कोडमदेसर भेरू जी के नाम से बना हुआ है! यह भेरुजी बीकानेर के राठौड़ वंश के आराध्य देव कहलाते हैं!


०बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी करणी माता तथा कुलदेवी नागणेची माता है!
note. चारणो  की कुलदेवी करणी माता कहलाती है!

०प्राचीन जांगल प्रदेश की राजधानी अहिछत्रपुर थी, जो वर्तमान में नागौर जिले में है!

०बीकानेर राज्य की स्थापना पहले हुई जबकि बीकानेर नगर की स्थापना बाद में हुई!

० बीकानेर नगर की स्थापना 1488 में राव बीका ने राती घाटी स्थान पर अक्षय तृतीया/आखा तीज/ वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन की थी!
 इसी कारण बीकानेर में आखातीज का पतंग महोत्सव प्रसिद्ध है!
note. नागौर जिले में मेड़ता की स्थापना भी आखातीज को मानी जाती है! नागौर जिले के मेड़ता को मेदिनीपुर भी कहा जाता है!

० जिस दिन बीकानेर नगर की स्थापना हुई( अखा तीज) उसी दिन राव बिका ने एक दुर्ग की नींव भी रखी, उस दुर्ग का नाम "राव बिका की टेकरी"था। राव बिका की टेकरी एक लघु दुर्ग था, बाद में इसी टेकरी के ऊपर रायसिंह ने जूनागढ़ दुर्ग बनवाया था! एक पुराने दुर्ग पर एक नया दुर्ग बनाया गया,इसी कारण इस नए दुर्ग को जूनागढ़ कहा गया!जूनागढ़ दुर्ग को "जमीन का जेवर"और "चिंतामणि दुर्ग"भी कहते हैं! अतः बीकानेर दुर्ग का निर्माण रायसिंह ने करवाया ना कि  राव बिका ने!
बीकानेर राज्य की दूसरी राजधानी 1488 में बीकानेर नगर को बनाया गया, जब की पहली राजधानी कोडमदेसर थी!

०बीकानेर के राठौड़ वंश के कुलदेवता लक्ष्मी नारायण  कहलाते हैं, लक्ष्मी नारायण का मंदिर बीकानेर नगर में है!जिसका निर्माण  राव लूणकरण ने करवाया था!

०अक्षय तृतीया (आखातीज) आबुझ सावे के लिए प्रसिद्ध है, राजस्थान में अधिकांश बाल विवाह इसी सावे में होते हैं, हाल ही में प्रशासन की सक्रियता व सामाजिक बदलाव के कारण इसमें कमी आई है!


० बीकानेर शासकों की वंशावली:
*राव बिका- बीकानेर राज्य की स्थापना की!
*राव नरा- अल्प आयु में मृत्यु हो गई!
*राव लूणकरण-  राव लूणकरण को "कलयुग का कर्ण" भी कहा जाता है! इन्हें बिट्टू सुजा ने यह उपाधि दी! बिट्टू सुजा  राव जेतसी के दरबारी कवि थे! राव लुणकरण ने "लूणकरणसर"नगर का निर्माण करवाया!
Note: जैसलमेर में एक शासक था जिसका नाम भी राव लूणकरण था जिसने अपनी पुत्री उमादे का विवाह मारवाड़ के शासक मालदेव से करवाया था! यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई!
*राव जेतसी- राव जेतसी साहिबा/पाहिबा के युद्ध में राव मालदेव द्वारा मारा गया था! (1542 ईसवी में).
*राव कल्याणमल- यह अपने पिता की मृत्यु के बाद में शेरशाह सूरी के दरबार में चला गया, शेरशाह सूरी ने गिरी सुमेल युद्ध जीतने के बाद में राव कल्याणमल को बीकानेर का राजा बना दिया था! राव कल्याणमल ने नागौर दरबार में मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी!
*महाराजा रायसिंह- रायसिंह से पहले सभी शासक राव की उपाधि लगाते थे,इन्होंने प्रथम बार महाराजा की उपाधि धारण की साथ ही जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया!

देवी मुंसी प्रसाद ने महाराजा रायसिंह को "राजपुताने का कर्ण" कहा!
*महाराजा कर्ण सिंह- इनके शासनकाल में 'मतीरे की राड़''नामक युद्ध हुआ!
*महाराजा अनूप सिंह- इन्होंने अनूपगढ़ नगर बसाया!
*महाराजा सूरत सिंह- 1818 में इन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि की थी!
*महाराजा जोरावर सिंह- हुरडा सम्मेलन में भाग लिया!
*महाराजा गंगा सिंह- गंगनहर लेकर आए!
*महाराजा शार्दुल सिंह-अंतिम शासक!


#बीकानेर के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:_
०एशिया की सबसे बड़ी 'उन मंडी' बीकानेर में स्थित है, अतः बीकानेर को 'उन का घर' कहा जाता है!

० बीकानेर जिले का सबसे बड़ा कुआं--अलख सागर!

० लूणकरणसर की स्थापना राव लूणकरण द्वारा!
राजस्थान में सर्वाधिक मूंगफली का उत्पादन लूणकरणसर में होता है, अतः लूणकरणसर को 'राजस्थान का राजकोट' भी कहा जाता है!
Note: भारत में सर्वाधिक मूंगफली उत्पादन राजकोट (गुजरात) में होता है!

० राजस्थान में सर्वप्रथम फव्वारा पद्धति का आरंभ लूणकरणसर तहसील (बीकानेर) में हुआ था! यह एक सिंचाई पद्धति है!

Note: जबकि बूंद-बूंद पद्धति का आरंभ जयपुर से हुआ!

० लिग्नाइट आधारित कोयले की सबसे बड़ी खान राजस्थान में पलाना (बीकानेर) में है!

० जोहडबीड(बीकानेर):_राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र स्थित है! और इसी अनुसंधान केंद्र के अंदर कैमल मिल्क डेयरी भी है (भारत की एकमात्र डेयरी जहां पर ऊंट का दूध मिलता है)!

० विमला कौशिक:_यह बीकानेर की महिला है! इन्हें "पानी वाली बहन जी" भी कहते हैं! "जल संरक्षण" में इनका योगदान सर्वाधिक रहा है!

० पाटा संस्कृति:_बीकानेर में आचार्य के चौक में लकड़ी के बने बड़े पाटो पर लोगों द्वारा लोक नाट्य किया जाता है!इसको पाटा संस्कृति कहते हैं!

०बीकानेर के शासक महाराजा डूंगर सिंह के काल में बीकानेरी भुजिया का प्रचलन हुआ था!

० डॉ. लुईजी तेसीतोरी:_यह महाराजा गंगासिंह के समय बीकानेर आए! यह मूलतः इटली के थे! इनकी कब्र बीकानेर में है! इनका संबंध भाषा,साहित्य,पुरातत्व से था! नथमल जोशी द्वारा इनकी जीवनी लिखी गई जिसका शीर्षक था-"टिब्बो का मसीहा/धोरा रो धोरी"
नथमल जोशी द्वारा इसके अलावा एक और लिखित ग्रंथ है-"एक बींद दो बिंदनीया"! नथमल जोशी डिंगल भाषा के विद्वान थे!

०कूलर उद्योग के लिए बीकानेर जिला प्रसिद्ध है, यहां पर लकड़ियों के कूलर बनाए जाते हैं!

० देवी कुंड की छतरियां:_ देवी कुंड सागर के निकट, बीकानेर!
यह छतरियां बीकानेर के राठौड़ वंश का सही शमशान है!
राव कल्याणमल से लेकर अंतिम शासक सादुल सिंह तक की छतरियां यहां पर है! इससे पहले के शासकों की छतरियां बीकानेर शहर से दूर स्थित है!

० मुकाम तालवा:_ बीकानेर!
जांभोजी का समाधि स्थल.
विश्नोई संप्रदाय की प्रमुख पीठ.
यहां वर्ष में दो बार मेला भरता है_
1. आश्विन अमावस्या 2. फाल्गुन अमावस्या.
० समराथल धोरा:_ बीकानेर!
इसे धोंक धोरा भी कहते हैं!
यहां पर जांभोजी ने तप किया था! यहां पर जांभोजी को ज्ञान प्राप्त हुआ था!
यहां पर जांभोजी ने अपना प्रथम उपदेश दिया तथा विश्नोई संप्रदाय का प्रतिपादन किया!
Note:_जांभोजी का जन्म पीपासर, नागौर में हुआ था!

० लक्ष्मी नारायण मंदिर:_ बीकानेर शहर!
निर्माण राव लूणकरण द्वारा!
यह बीकानेर के राठौड़ वंश के कुलदेवता है! प्रमुख मेला निर्जला एकादशी को (जेष्ठ शुक्ल एकादशी) लगता है!

भांडासर जैन मंदिर:_ बीकानेर! 

निर्माण भांडाशाह ओसवाल व्यापारी द्वारा.

इसे "त्रिलोक दीपक प्रसाद मंदिर" भी कहा जाता है!
यह जैन धर्म के 5 वे तीर्थंकर सुमितनाथ को समर्पित मंदिर है!
इस मंदिर की नींव में "घी और नारियल" भरा गया था, इसलिए इसे "घी नारियल वाला मंदिर" भी कहा जाता है!
Note: रणकपुर जैन मंदिर को भी त्रिलोक दीपक प्रसाद मंदिर कहा जाता है!
० उस्ता कला:_
हुमायूं- सिंध से अपने साथ दो चित्रकार लेकर आते हैं!
अकबर- द्वारा चित्रकारी की नींव रखी गई!
जहांगीर- चित्रकला का स्वर्ण काल! जहांगीर के काल में ईरान (पारस या पर्शिया) से चित्रकार लाहौर में आते हैं यह चित्रकार उस्ताद कहलाए!
औरंगजेब ने चित्रकला पर प्रतिबंध लगा दिया अतः चित्रकार बेरोजगार हो गए और वह चित्रकार लाहौर से जूनागढ़(बीकानेर) आ जाते हैं! यहां पर इनको महाराजा अनूपसिंह के काल में "माथेरण जाति" के चित्रकारों ने शरण दी! माथेरण जाति जैन धर्म से संबंधित है, यह बीकानेर के स्थानीय चित्रकार थे!
लोहार के उस्तादों की चित्रकारी उस्ता कला कहलाई! उस्ता कला तीन कार्य के लिए प्रसिद्ध है!
1. लकड़ी पर नक्काशी
2. भित्ति चित्रण/दिवार पर चित्रण
3. ऊंट की खाल पर चित्रकारी
उस्ता कला मूल रूप से लाहौर की कला थी! इससे पहले यह पर्शिया की थी!
० लालगढ़ पैलेस:_ बीकानेर
निर्माण-1937 को महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता लाल सिंह की स्मृति में बनवाया!
वास्तुकार-स्टीवन जैकब (इंग्लैंड से)
भित्ति चित्र- जर्मन चित्रकार मुलर द्वारा आधुनिक काल के चित्र बनाए गए!
उद्धघाटन-लॉर्ड होर्डिंग्स द्वारा!
"अनूप संस्कृत लाइब्रेरी" तथा "शार्दुल संग्रहालय" दोनों ही लालगढ़ पैलेस के अंदर स्थित है!
लालगढ़ पैलेस लाल पत्थरों द्वारा निर्मित है, यह लाल पत्थर दुलमेरा की खानों से लाया गया था!
महाराजा गंगासिंह बीकानेर के शासक बने तब शाही परिवार जूनागढ़ में निवास करता था! बाद में इन्होंने लालगढ़ पैलेस बनवाया और 1937 में शाही परिवार लालगढ़ पैलेस में रहने लगा!
लाल पत्थर से बने होने के कारण तथा गंगा सिंह के पिता लाल सिंह के कारण इस पैलेस का नाम लालगढ़ पड़ा!

बीकानेर के प्रमुख मेले
1. करणी माता का मेला:_ देशनोक,बीकानेर में!
यहां वर्ष में दो बार मेला भरता है !
"चैत्र नवरात्र" और "आश्विन नवरात्र" को!
2. सेवकों का मेला: देशनोक,बीकानेर में!
इसे "चेननी चेरी" का मेला भी कहते हैं,यह 'फाल्गुन शुक्ल सप्तमी' को लगता है।
3. जांभोजी का मेला: मुकाम तालवा, बीकानेर में!
यह मेला वर्ष में दो बार लगता है ।
"आश्विन अमावस्या" ओर "फाल्गुन अमावस्या"!
 इसे जंभेश्वर मेला भी कहा जाता है!
4. निर्जला ग्यारस का मेला: इसे लक्ष्मी नारायण जी का मेला भी कहा जाता है! यह लक्ष्मी नारायण मंदिर (बीकानेर) में लगता है! यह जेष्ठ शुक्ल एकादशी को लगता है!
5. भट्ठा पीर का उर्स: गजनेर, बीकानेर में!
6. भेरू जी का मेला:  कोडमदेसर,बीकानेर में!
यह मेला "भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी"को लगता है!
7. नागणेची माता का मेला: जूनागढ़ दुर्ग, बीकानेर में!
नागणेची माता की मूल मूर्ति नागाणा गांव में थी, जिसे पहले मेहरानगढ़ लाया गया बाद में राव बीका द्वारा मारवाड़ के राव सुजा पर आक्रमण करके यह मूर्ति छीनकर बीकानेर में लाई गई, वर्तमान में यह मूर्ति "18 भुजाओं वाली और लकड़ी से बनी हुई" जूनागढ़ दुर्ग में स्थित है।
यह मेला वर्ष में दो बार लगता है!
"चैत्र नवरात्र" ओर "आश्विन नवरात्र" में!
8. कपिल मुनि का मेला: कोलायत,बीकानेर में!
 कार्तिक पूर्णिमा को यह मेला लगता है!
 Note:पुष्कर का मेला भी कार्तिक पूर्णिमा को भरता है!



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