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०16वीं शताब्दी में मुगलों का आगमन राजस्थान में हुआ था ! |
०जयपुर के शासक सवाई जयसिंह ने अपनी बहन अमर कुंवरी का विवाह बूंदी के शासक बुद्धसिंह हाडा से किया परंतु बुद्धसिंह का पुत्र नहीं हो रहा था, और साथ ही बुद्ध सिंह वृद्ध हो रहा था! तब सवाई जयसिंह ने बुद्धसिंह हाडा को कहा कि अपना राज्य अपने भाई दलेलसिंह को सौंप दो जिसके कारण बुद्ध सिंह ने दलेल सिंह को शासक बना दिया!
०सवाई जयसिंह ने अपनी पुत्री चंद्रकुंवरी का विवाह दलेल सिंह से करवा दिया! इस विवाह का विरोध अमरकुंवरी ने किया परंतु फिर भी यह विवाह हो गया अब शासक दलेल सिंह था!
०कुछ वर्षों के बाद में अमरकुंवरी को पुत्र हुआ, तब अमर कुंवरी ने मराठों से सहायता मांगी सहायता के लिए मल्ह राव होल्कर राजस्थान में आए इस प्रकार राजस्थान में पहली बार मराठों का प्रवेश हुआ! मराठों का राजस्थान में सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी रियासत में हुआ!
०मराठों ने राजस्थान में लूटपाट और आंतक फैलाने का काम किया! मराठों ने अपने साथ पंडारी जाति को भी मिला लिया! इसके साथ ही बहुत से सामंतों को भी मराठों ने अपने साथ मिला लिया! राजस्थान में लूटपाट से अव्यवस्था का माहौल फैल गया! जिससे परेशान होकर देसी राजाओं को अंग्रेजों से संधीया करनी पड़ी! राजस्थान के विभिन्न शासकों ने अंग्रेजों के साथ संधि करना शुरू किया राजस्थान की अधिकांश सन्धिया 1817-18 में हुई!
०राजस्थान में पहली/सर्वप्रथम संधि करौली रियासत ने की (1817-18)!
०राजस्थान में अंतिम संधि सिरोही रियासत ने 1823 मैं की!
०1817-18 मैं राजस्थान की अधिकांश रियासतों ने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली! इसी के साथ राजस्थान अंग्रेजों के अधीन हो गया! इस प्रकार की संधि के माध्यम से अंग्रेजों ने अपने पोलिटिकल एजेंट विभिन्न रियासतों में नियुक्त कर दिए! और बदले में राज्य की सुरक्षा का वादा किया साथ ही आंतरिक विद्रोह की परिस्थिति में सहायता का आश्वासन भी दिया!
०धीरे-धीरे अंग्रेजों ने राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया! जिससे धीरे धीरे राजाओं की दशा दयनीय होती जा रही थी! जिसके कारण विद्रोह की भावना राजाओं के मन में पैदा हुई!
राजस्थान में 1857 की क्रांति के कारण
1. शासकों में असंतोष
मारवाड़ शासक मानसिंह अंग्रेजों के विरोधी थे, जो भी अंग्रेज विरोधी होता मानसिंह उससे गठबंधन बना लेते थे! इसलिए भरतपुर के जाट शासक रणजीत सिंह से मानसिंह की मित्रता थी! मानसिंह क्रांतिकारियों को सहायता देते थे, कई बार साधु वेश में कई क्रांतिकारी गुप्त रूप से मान सिंह से मिलने आते थे! जब लॉर्ड विलियम बैंटिक ने एक भव्य दरबार का आयोजन किया तब मानसिंह इस दरबार में नहीं जाते हैं! मानसिंह के समय में अंग्रेजों तथा रूस के मध्य में लड़ाई थी अतः मानसिंह ने एक षड्यंत्र रचा कि जब रूस की सेना अफगानिस्तान से होते हुए भारत में आएगी तब हम रूसी सेना के साथ मिल लेंगे और अंग्रेजों को यहां से बाहर कर देंगे परंतु इसका पता अंग्रेजों को चल गया था! अंग्रेजों ने मानसिंह के विरोध में जोधपुर में 1835 ईस्वी में जोधपुर लिजियन की स्थापना कर दी और जोधपुर लिजियन के खर्चे की पूर्ति के लिए अंग्रेजों ने डीडवाना को हड़प लिया! आखिरकार 1839 में जोधपुर के मान सिंह के साथ अंग्रेजों ने एक और संधि कर ली! जिससे जोधपुर में पोलिटिकल एजेंट को रखना स्वीकार कर लिया गया!
कोटा के शासक किशोर सिंह अंग्रेजों से नाराज थे, क्योंकि अंग्रेजों ने इनका साथ ना देकर जालमसिंह का साथ दिया था!
अंग्रेजों ने जयपुर से संधि कर सांभर को हड़प लिया! साथ ही राजमाता के अधिकारों को छीन लिया! इससे जनता नाराज हो गई जनता ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया जिसमें अंग्रेजों के मेजर ब्लैक मारे गए!
डूंगरपुर के शासक जसवंत सिंह को हटाकर वृंदावन भेज दिया गया तथा उसके स्थान पर प्रतापगढ़ के शासक सामंत सिंह के पुत्र दलपत सिंह को डूंगरपुर में शासक बनाया गया! इस कारण जसवंत सिंह अंग्रेजों से खफा था और इस प्रकार की नीति से अंग्रेजों ने राजपूत शासकों को आपस में शत्रु बना दिया!
Note. हालांकि शासकों में असंतोष था परंतु फिर भी 1857 की क्रांति में राजस्थान के अधिकांश शासकों ने अंग्रेजों का साथ दिया था!
2. सामंतो में असंतोष
अंग्रेजों से संधि से पहले राजाओं के पास सेना होती थी!यह सेना सामंतों की होती थी! संधि के बाद में सामंती सेना को हटा दिया गया उसके स्थान पर ब्रिटिश सेना को लगाया गया! जिससे सामंतों की स्थिति कमजोर हो गई!इस परिवर्तन से सामंतों को चाकरी से मुक्त कर दिया!
संधि से पहले किसान सामंत की अनुमति के बिना एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जा सकते थे! सामंतों का यह अधिकार उनसे छीन लिया गया अब किसान अपनी मर्जी से आ जा सकता था!
पहले सामंत व्यापारियों से उनकी सुरक्षा के लिए राहे दानी और दानापानी आदि कर वसूल करते थे! परंतु बाद में सामंतो से यह अधिकार छीन लिया गया!
पहले सामंत के खिलाफ न्यायलय में किसी भी प्रकार का कोई भी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था! सामंतो का यह अधिकार भी छीन लिया गया!
सामंत पहले टैक्स लिया करते थे! अब उनको टैक्स देना पड़ता था! सामंतो के अधिकार छीन कर उनसे आमजन की तरह व्यवहार किया जाने लगा सारे विशेष अधिकार छीन लिए गए!
इस प्रकार सामंतों के अधिकार छीनने से सामंतों में असंतोष की भावना पैदा हो गई, जो आगे जाकर 1857 की क्रांति में स्पष्ट दिखाई दी!
3. जनता में असंतोष
अंग्रेजी सेना से संधि के बाद में धीरे-धीरे जैसे अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ने लगा वैसे ही जनता पर कई प्रकार के कर तथा शोषण बढ़ने लगे इससे जनता दुखी थी!
जवाहर जी तथा डूंगर जी दोनों डकैत थे! जो सीकर जिले से संबंधित थे! यह दोनों अंग्रेजी छावनीयों को लूटते थे! इन के सम्मान में सीकर में इनकी कई मूर्तियां बनी हुई है! साथ ही उनके सम्मान में कई लोकगीत और काव्य लिखे गए! जब यह दोनों फतेहपुर में लूट कर रहे थे, तो उन्हें पकड़ लिया और आगरा में बंदी बनाकर रखा गया! उनके कई साथियों ने मिलकर इन्हें मुक्त करवाया!मुक्त होने के बाद में यह नसीराबाद छावनी को लूटते हैं!रास्ते में यह जहां जहां से गुजरे जनता ने इन पर पुष्पों से वर्षा की जबकि इनका पीछा करने वाली अंग्रेजी सेना पर पत्थर बरसाए इससे स्पष्ट होता है, कि जनता अंग्रेजी शासन से दुखी थी! जनता में असंतोष था!
4. साहित्यकारों का योगदान
1857 की क्रांति से पहले कई साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से लोगों के मन में आक्रोश की भावना उत्पन्न की जिनमें प्रमुख साहित्यकार निम्न है!
बाकीदास, कवि दूलजी, कवि उज्जवल, कवि लक्ष्मी दान, कवि गिरधर इत्यादि
5. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण अंग्रेजों ने भारतीय धर्म में अपना हस्तक्षेप किया, जैसे सती प्रथा पर रोक इत्यादि
इससे भारतीय जनमानस में एक असंतोष पैदा हो गया! इस प्रकार यह भी एक कारण रहा जिसके कारण लोगों ने 1857 में अंग्रेजों का पुरजोर विरोध किया!
राजस्थान में 1857 की क्रांति का घटनाक्रम
०1832 में अंग्रेजों द्वारा अजमेर में राजपूताना रेजिडेंसी की स्थापना की गई! राजपूताना रेजिडेंसी की स्थापना का श्रेय लॉर्ड विलियम बेंटिक को दिया जाता है!राजपूताना रेजीडेंसी में पहला agg(agent to governor general) मिस्टर लोकेट था!
०राजपूताना रेजिडेंसी की स्थापना अजमेर में "मैगजीन के किले" में की गई! इसके बाद में 1845 मैं माउंट आबू में राजपूताना रेजिडेंसी का दूसरा कार्यालय स्थापित किया गया!
०माउंट आबू मैं राजपूताना रेजिडेंसी का कार्यालय ग्रीष्मकालीन समय में चलता था! और शीतकालीन समय में यह कार्यालय अजमेर में चलता था! राजपूताना रेजिडेंसी का हेड ए.जी.जी कहलाता था!
०1857 की क्रांति के समय राजपूताना रेजिडेंसी का हेड अर्थात ए.जी.जी जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस था! जिसके नीचे बहुत सारे पोलिटिकल एजेंट काम करते थे!
०1857की क्रांति के समय राजस्थान में 6 अंग्रेजी छावनीया थी!
1. खेरवाड़ा, उदयपुर(भील कोर)
2. नसीराबाद, अजमेर(15 बंगाल नेटिव इन्फेंट्री)
3. नीमच, मध्य प्रदेश(कोटा कंटिजेंट)
4. ब्यावर, अजमेर(मेर रेजीमेंट)
5. देवली, टोंक(कोटा कंटिजेंट)
6. एरिनपुरा, पाली(जोधपुर लीजन)
०राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय राज्यों में तत्कालीन राजा तथा तत्कालीन पोलिटिकल एजेंट निम्न प्रकार से थे:_
1. जोधपुर:_तख्त सिंह, मेक मोसेन
2. मेवाड़:_ स्वरूप सिंह, कैप्टन शावर्श
3.कोटा:_रामसिंह द्वितीय, बर्टन
4. जयपुर:_रामसिंह, इडन
5.भरतपुर:_जसवंतसिंह, मॉरिसन
6.अजमेर:_अजमेर अंग्रेजो के अधीन था! जहां पर कोई पॉलिटीकल एजेंट नहीं था। डिकसन नाम का कमिश्नर था!
०भारत में 1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई 1857 में मेरठ से हुई, इस विद्रोह की खबर राजस्थान में 19 मई 1857 को ए.जी.जी जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस को ग्रीष्म काल में माउंट आबू स्थित राजपूताना रेजिडेंसी के कार्यालय में प्राप्त हुई!
०इस समय अजमेर में 15 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री सैनिक टुकड़ी थी! जो हाल ही में मेरठ से वापस अजमेर आई हुई थी! पैट्रिक लॉरेंस ने सोचा कि यह टुकड़ी जो मेरठ से आई है, विद्रोह की भावना लेकर आई होगी! अतः पैट्रिक लॉरेंस ने 15 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को अजमेर से हटाकर नसीराबाद भेज दिया! और ब्यावर से मेर रेजिमेंट की दो टुकड़ियों को अजमेर बुला लिया!
०जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस को अजमेर की सुरक्षा करना जरूरी था,क्योंकि अजमेर में भारी मात्रा में बारूद तथा सरकारी खजाना था!
०नसीराबाद में 15 N.I. चली गई, वहां पहले से 30N.I. मौजूद थी! साथ ही अंग्रेज वफादार मुंबई लांसर्स के सैनिक भी मौजूद थे! (अब नसीराबाद में 3 सैनिक टुकड़ियां हो गई : 15ni+30ni+Bombay lansarers)!
०मुंबई लांसर्स के सैनिकों को आदेश मिला कि आप 15 N.I के सैनिकों के ऊपर रात्रि गश्त करें, इससे 15 N.I के सैनिकों के मन में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो गई!
०नसीराबाद में "28 मई 1857" को राजस्थान मैं क्रांति की शुरुआत हुई, इसका नेतृत्व बख्तावर सिंह ने किया!और यह विद्रोह 15 N.I के द्वारा किया गया!
०30 मई 1857 को 30N.I भी 15N.I के साथ हो गई! राजस्थान में सभी 6 सैनिक छावनी में नसीराबाद सबसे बड़ी एवं शक्तिशाली सैनिक छावनी थी!
राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद छावनी से 28 मई1857 को मेरठ से आई हुई 15N.I द्वारा की गई! 30 मई1857 को 30N.I भी क्रांति में शामिल हो गई!
०नसीराबाद में न्यू बेरी नामक अंग्रेज अधिकारी मारा गया!नसीराबाद से क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली की ओर कूच कर गए! 18 जून 1857 को यह सैनिक दिल्ली पहुंचे!
०सबसे बड़ी छावनी: नसीराबाद!
०सबसे छोटी छावनी: देवली!
०राजस्थान में 2 सैनिक छावनी जिसमें विद्रोह नहीं हुआ: खेरवाड़ा तथा ब्यावर!
०राजस्थान में सबसे पहले क्रांति की शुरुआत कहां हुई: नसीराबाद में 28 मई1857 को!
०राजस्थान में सबसे भयंकर विद्रोह कहां हुआ: कोटा में यह एक जन विद्रोह था!
०नीमच छावनी को कौन सा पोलिटिकल एजेंट संभालता था: कैप्टन सवॉर्श जो मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट था!नीमच छावनी को संभालता था!
०सबसे अधिक संघर्ष: एरिनपुरा छावनी पाली!
०नसीराबाद में कौन से अंग्रेज अधिकारी मारे गए: न्यूबेरी तथा स्पोटिज वुड मारे गए और पेनी को हृदयाघात हुआ जिससे वह मर गया तथा प्रिचार्ड भाग गया!
०अपने परिवार के साथ प्रिचार्ड भागकर ब्यावर चला गया! विद्रोह के खत्म होने के बाद में प्रिचार्ड अपनी रिपोर्ट अजमेर में देता है, इस रिपोर्ट में उसने कहा कि अगर सैनिक दिल्ली की जगह अजमेर आते तो मामला बहुत खराब होता शायद अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ सकता था!
नसीराबाद के सैनिक दिल्ली की ओर रवाना हुए, जिनका पीछा हीठकोट तथा वाल्टर ने किया परंतु इन को सफलता नहीं मिली!
भरतपुर में विद्रोह: 31 may 1857
भरतपुर में 1857 के समय शासक जसवंत सिंह था! तथा भरतपुर का पोलिटिकल एजेंट मॉरीसन था! भरतपुर में विद्रोह गुर्जर तथा मेर जाति के लोगों द्वारा किया गया!भरतपुर का विद्रोह जन विद्रोह था! सैनिक विद्रोह नहीं था!इस विद्रोह में मॉरिसन भागकर आगरा चला गया! और विद्रोही दिल्ली की ओर कूच कर गए!
नीमच का विद्रोह: 3 June 1857
नीमच में विद्रोह ना हो इसके लिए अंग्रेज अधिकारी एबोट ने सैनिकों को वफादारी की शपथ दिलवाई!
नीमच छावनी के एक सैनिक जिसका नाम मोहम्मद अली बेग(अवध निवासी) ने कहा की अंग्रेजों ने अपनी शपथ भंग की और अवध पर अपना अधिकार कर लिया इसलिए भारतीय अपनी शपथ की अनु पालना नहीं करेंगे!
नीमच में विद्रोह का नेतृत्व मोहम्मद अली बेग तथा हीरालाल ने किया था!
नीमच में सैनिकों ने किले के बाहर तोपखाने पर अधिकार कर लिया! तथा मैकडॉनल्ड नामक अंग्रेज अधिकारी ने किले को बचाने के लिए किले को अंदर से बंद कर दिया!परंतु किले में मौजूद भारतीय सैनिकों ने किले पर अधिकार कर लिया! सैनिकों ने एक सार्जेंट की पत्नी तथा उसके बच्चों को मार डाला!
यहां से 40 अंग्रेज रात्रि में भागकर चित्तौड़ की ओर रवाना हुए और बीच में डूंगला गांव पहुंचे, इस गांव में एक किसान रूगा राम ने इन्हें शरण दी इसकी खबर मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट शावर्श को मिली तब शावर्श मेवाड़ के शासक स्वरूप सिंह की सेना के साथ डूंगला गांव पहुंचा और वहां से 40 अंग्रेजों को मेवाड़ लाया गया! इन 40 अंग्रेजों को को मेवाड़ के पिछोला झील के जग मंदिर में ठहराया गया! जग मंदिर में स्वरूप सिंह ने इन 40 अंग्रेजों की देखरेख के लिए गोकुल चंद पारेख को नियुक्त किया!
नीमच के सैनिक नीमच में लूटपाट करके शाहपुरा निंबाहेड़ा टोंक से होते हुए दिल्ली की ओर चले गए!
बाद में 8 June1857 को मेवाड़ के पॉलिटीकल एजेंट शावर्श और कोटा के पॉलिटीकल एजेंट बर्टन ने नीमच पर अधिकार कर लिया!
मारवाड़ में विद्रोह: 21अगस्त1857
मारवाड़ का शासक तख्तसिंह था! और पॉलिटीकल एजेंट मैक मोसन था। सैनिक छावनी एरिनपुरा(पाली) थी, जिसमें जोधपुर लीजन के सैनिक थे! जोधपुर लीजन के सैनिक पुरबिया कहलाते थे! मानसिंह के बाद जोधपुर का शासक तख्तसिंह बना,जो कि इडर ( गुजरात) से गोद लिए गए थे!
19 मई 1857 को agg जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस माउंट आबू से अजमेर की ओर रवाना होता है! और तख्तसिंह को सूचना भेजता है कि मेरा पुत्र एलेक्सजेंडर तथा मेरे अंग्रेज साथी जो माउंट आबू में है, कि हिफाज़त आपको करनी है! इसलिए तख्तसिंह ने एरिनपुरा छावनी के पुरबिया सैनिकों को आबू भेजा!
21अगस्त 1857 को जोधपुर लिजन के पुरबिया सैनिक विद्रोह कर देते है, ये सैनिक आबू में अंग्रेजी ठिकानों को लूटकर 23 अगस्त को वापस एरिनपुरा(पाली) आ जाते है!
ये सैनिक 23 अगस्त को एरिनपुरा को लूट लेते है! यहां पर इनका नेतृत्व आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह ने किया! इन्होंने यहां एक नारा दिया "चलो दिल्ली मारो फिरंगी"!
एरिनपुरा को लूट के सारे सैनिक पाली के आऊवा नामक जगह पर आ जाते है! आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने इन सैनिकों को शरण दी!
मारवाड़ में 1857 की क्रांति का केंद्र आऊवा था! कुशाल सिंह की देवी थी, सुगाली माता जिसकी वो पूजा करता था! सुगाली माता,मा काली का ही एक रूप है!सुगाली माता के 10 मुंह और 54 हाथ बताए गए हैं! 1857 में सैनिक इसी देवी की पूजा करके युद्ध में जाते थे, इसलिए सुगाली माता को "1857 की क्रांति की देवी" कहा जाता है!
आऊवा में इन सैनिकों का नेतृत्व कुशाल सिंह ने किया!तख्त सिंह ने इनके दमन के लिए सेना भेजी जिसका नेतृत्व अनाड़ सिंह और हीथ कोट ने किया! इनके मध्य बिथोड़ा (पाली) का युद्ध हुआ! इस युद्ध में अनाड सिंह मारा गया! और हीथ कोट भाग गया! बिथोडा का यह युद्ध 8 September 1857 को हुआ था! 8 September 1857 को हुवे इस युद्ध में हार का पता जब पैट्रिक लॉरेंस को लगा तो पैट्रिक लॉरेंस और मैक मोसेंन सेना लेकर युद्ध के लिए चेलवास की और आते है!
18 September 1857 को कुशाल सिंह की सेना तथा अंग्रेजी सेना के मध्य चेलावास का युद्ध हुआ! चेलावास वर्तमान में पाली जिले के अंतर्गत आता है! चेलावास के युद्ध को "काला गोरा" युद्ध भी कहते हैं! इस युद्ध में अंग्रेजी सेना की हार हुई मेक मोशन का गला काट दिया गया! और सिर को आऊवा के किले पर लटकाया गया! और पैट्रिक लॉरेंस भाग गया!
चेलावास के इस युद्ध में अंग्रेजी सेना की हार हुई! इसकी सूचना गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को मिलती है! कनिंग ने होम्स के नेतृत्व में 20 जनवरी 1858 को एक संयुक्त सेना भेजी, इस सेना ने आऊवा पर अधिकार कर लिया! इस सेना में नसीराबाद छावनी के मुंबई लांसर्स के सैनिक और पालनपुर के सैनिक थे! और इस सेना का नेतृत्व होम्स ने किया था!
इस सेना ने आऊवा को घेर लिया कुशाल सिंह ने किले की जिम्मेदारी अपने भाई पृथ्वी सिंह को सौंप दी! और स्वयं वहां से भाग निकले! कुशाल सिंह पहले कोठारिया गांव (जो कि राजसमंद में है) चला गया कोठारिया गांव में राव जोध सिंह ने कुशाल सिंह को शरण दी! बाद में कुशाल सिंह सलूंबर चले गए! जहां पर इनको केशरी सिंह ने शरण दी!आखिर में 1860 में नीमच में जाकर कुशाल सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया!
कुशाल सिंह के आरोपों की जांच के लिए एक आयोग बिठाया गया इस आयोग का नाम "टेलर आयोग" था! टेलर आयोग ने कुशाल सिंह को निर्दोष साबित किया! 1864 में कुशाल सिंह का देहांत उदयपुर में हो गया!
सुगाली माता के मंदिर को होम्स ने तोड़ दिया तथा सुगाली माता की मूर्ति को अपने साथ अजमेर लेकर गया! कुछ समय यह मूर्ति अजमेर में रही बाद में इस मूर्ति को बांगड़ (पाली) में रखा गया! *वसुंधरा राजे ने इस मूर्ति को वापस आऊवा में स्थापित किया!
कोटा में विद्रोह..
1857 की क्रांति के समय कोटा का शासक महाराव रामसिंह द्वितीय था! तथा कोटा में पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन था! कोटा का यह विद्रोह एक जन विद्रोह था! सबसे लंबा चलने वाला और भीषण विद्रोह राजस्थान में कोटा में हुआ था! कोटा में 1857 की क्रांति का नेतृत्व मेहराब खान तथा जय दयाल ने किया था!
कोटा में हुए इस विद्रोह को सुनियोजित क्रांति भी कहा जाता है! यह विद्रोह सबसे लंबा चला (लगभग 6 महीने)! इस विद्रोह में मेजर बर्टन तथा उसके दो पुत्र फ्रैंक और ऑर्थर साथ ही बर्टन के 2 डॉक्टर सैडलर और कॉन्टम मारे गए!
जय दयाल एक वकील था! कोटा के शासक रामसिंह द्वितीय ने हाडोती एजेंसी की स्थापना की तथा जय दयाल को वहां पर वकील नियुक्त किया! 1857 की क्रांति से पहले जय दयाल को पद मुक्त कर दिया गया था! 1857 की क्रांति के समय जयदयाल एक बेरोजगार युवक था! कोटा में 1857 के समय "कोटा राज पलटन" नाम की सेना थी! जो विभिन्न टुकड़ियों में विभाजित थी! इसमें से दो टुकड़ियां ऐसी थी, जिसने 1857 में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। 1. भवानी पलटन 2. नारायण पलटन
नीमच में जब विद्रोह हुआ, तब मैकडॉनल्ड ने कोटा से मेजर बर्टन को बुलावा भेजा! मेजर बर्टन नीमच चले गए! पीछे मेहराब खा, जय दयाल तथा जय दयाल का भाई हरदयाल इन तीनों ने मिलकर एक योजना बनाई! इन्होंने एक परिपत्र जारी किया जिसमें लिखा था, की कोटा में मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे आटा इत्यादि में हड्डियों का चूर्ण है! तथा सैनिक जो कारतूस इस्तेमाल करते हैं, उसमें गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है! और इस परिपत्र को जनता में बांट दिया! साथ ही इस परिपत्र में यह भी लिखा कि ईसाइयों को नष्ट कर दीजिए, इस परिपत्र से जनता भड़क गई! इस सब की जानकारी जब रामसिंह द्वितीय के वकील नंदकिशोर को पड़ी तो नंदकिशोर ने मेजर बर्टन को वापस आने के लिए सूचना भेजी! परंतु बर्टन डर जाता है और वापस आने से मना कर देता है! तब रामसिंह द्वितीय मेहराब खान को कुरान की शपथ दिलाता है कि आप अंग्रेजों के वफादार रहेंगे और साथ ही बर्टन को सुरक्षा की गारंटी भी देते हैं! फिर बर्टन को वापस बुलावा भेजा जाता है, तब बटन 12 अक्टूबर को कोटा में वापस आ जाते हैं! 14 अक्टूबर को रामसिंह द्वितीय तथा बर्टन के मध्य एक गुप्त परामर्श हुआ इस परामर्श में तीन व्यक्ति शामिल थे! महारावल रामसिंह द्वितीय मेजर बर्टन और वकील नंदकिशोर!
इस परामर्श में मेजर बर्टन ने रामसिंह द्वितीय को कहा कि कुछ सैनिक विद्रोही है आप उन्हें पकड़ कर अंग्रेजों को सौंप दें परंतु इस परामर्श को लागू करने से पहले ही यह खबर बाहर लीक हो गई जिससे कोटा में विद्रोह शुरू हो गया। ए जी जी पैट्रिक लॉरेंस की रिपोर्ट के अनुसार कोटा में वकील नंद किशोर ने गुप्त परामर्श की बात को बाहर लीक कर दिया था जिसके कारण कोटा में विद्रोह हो गया था।
15 अक्टूबर 1857 को कोटा में क्रांति की शुरुआत हो गई नारायण पलटन तथा भवानी पलटन के सैनिकों ने तोपों,शस्त्रों पर अधिकार कर लिया इसके बाद रेजिडेंसी पहुंच कर सबसे पहले सैडलर तथा कोंटम (जो कि बर्टन के डॉक्टर थे) की हत्या कर दी बाद में फ्रैंक तथा ऑर्थर(बर्टन के 2पुत्र)की भी हत्या कर दी अंत में बर्टन को मारकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और बर्टन के सिर को पूरे कोटा शहर में घुमाया गया बाद में किले पर टांग दिया गया!
रामसिंह द्वितीय को बंदी बना दिया गया। मेहराब खान तथा जय दयाल, रामसिंह द्वितीय की हत्या करने वाले थे परंतु गुसाई जी के कहने पर कि यह तो भारतीय है इन्हें मत मारो। तब रामसिंह द्वितीय की जान बख्श दी गई राम सिंह को बंदी बनाकर किले में नजरबंद कर दिया गया।
गुसाई जी मथुरेश थे (मथुरा के महंत) साथ ही कोटा राज्य के धर्मगुरु थे!
रामसिंह द्वितीय को बंदी बना देने के बाद में सभी प्रशासनिक कार्य मेहराब तथा जय दयाल द्वारा किए जाने लगे। मेहराब तथा जय दयाल ने एक परवान जारी करवाया जिस पर महाराव रामसिंह द्वितीय के हस्ताक्षर करवा लिए इस परवान में लिखा था कि___ 1. मेजर पैटर्न की हत्या का ऑर्डर रामसिंह द्वितीय ने दिया था। 2. मेहराब तथा जय दयाल को प्रशासनिक अधिकार दिया जाता है!
अगले 6 महीने तक कोटा राज्य पर शासन क्रांतिकारियों का रहा।
6 मार्च 1858 को ए जी जी पैट्रिक लॉरेंस ने रोबोट्स के नेतृत्व में कोटा में एक सेना भेजी रोबोट्स कोटा की ओर रवाना हुआ रास्ते ने उसे करौली शासक मदन पाल अपनी सेना के साथ मिला। अब यह दोनों सेनाएं सम्मिलित होकर कोटा पहुंचती है और कोटा को घेर लिया जाता है। जय दयाल तथा मेहरा को पकड़ लिया जाता है तथा 30 मार्च 1858 को कोटा पर वापस अधिकार कर लिया जाता है जय दयाल तथा मेहराब को फांसी दे दी जाती है।
वह परवान जिस पर रामसिंह द्वितीय के हस्ताक्षर थे जब ए जी जी को मिलता है तब रामसिंह द्वितीय की तोपों की सलामी को कम कर दिया जाता है। राम सिंह की तोपों की सलामी को 17 से 13 कर दिया जाता है जबकि मदन पाल जो करौली शासक था की तोपों की सलामी को 13 से 17 कर दिया जाता है।
राजस्थान में 1857 में कोटा की क्रांति सबसे लंबी क्रांति थी सबसे भीषण क्रांति थी और सबसे सुनियोजित क्रांति थी।
धौलपुर का विद्रोह: 27 अक्टूबर 1857
धौलपुर का विद्रोह भी एक जन विद्रोह था 1857 के समय में धौलपुर का शासक भगवंत सिंह था। धौलपुर में विद्रोह का नेतृत्व रामचंद्र तथा हीरालाल ने किया था। ग्वालियर में जब विद्रोह हुआ तो अंग्रेज ग्वालियर से भागकर आगरा की ओर जा रहे थे बीच में धौलपुर के शासक ने इन अंग्रेजों को शरण दी और सकुशल आगरा भी पहुंचाया। इन अंग्रेजों का पीछा करते हुए क्रांतिकारी सैनिक भी धौलपुर पहुंच गए। यह बाहरी सैनिक जब धौलपुर के स्थानीय सैनिकों के साथ मिल जाते हैं तब धौलपुर जनता ने भी इनका साथ दिया। अब धौलपुर जनता,धौलपुर के स्थानीय सैनिक और बाहर से आए ग्वालियर सैनिक सब मिलकर धौलपुर में विद्रोह कर देते हैं और धौलपुर शासक भगवंत सिंह को जान से मारने की धमकी देते हैं। भगवंत सिंह डर के पटियाला से मदद मांगता है पटियाला से लगभग 2000 सिख सैनिक आते है और व्यवस्था को स्थापित करते हैं जबकि क्रांतिकारी सैनिक धौलपुर के शासक को लूट कर दिल्ली की ओर भाग जाते हैं।
टोंक रियासत का विद्रोह
1857 की क्रांति के समय टोंक का शासक वाजिरू उद्दोला था जो कि आमिर खा पिंडारी का पुत्र था।
वाजिरू उद्दोला ने अपने सैनिकों को शर्तों में बांध लिया कि कोई भी सैनिक विद्रोह नहीं करेगा अगर कोई सैनिक विद्रोह करेगा तो उसको वेतन नहीं दिया जाएगा इस प्रकार कई महीनों तक वेतन नहीं दिया गया जब तक कि विद्रोह खत्म नहीं हो जाता वेतन नहीं दिया जाएगा।
वाजिरू उद्दोला अपने किले में था और सैनिक किले के बाहर थे तात्या टोपे जब टोंक रियासत में आते हैं तो वो यहां के स्थानीय सैनिकों के पास जाकर विद्रोह करने को कहते हैं परंतु सैनिक नहीं मानते क्योंकि उनको वेतन नहीं मिलेगा इसलिए तात्या टोपे इन सैनिकों की पत्नियों के पास जाते हैं और उन्हें अपने साथ मिला लेते हैं इस प्रकार तात्या टोपे इन महिलाओं के साथ में किले के पास आते हैं और सैनिकों को समझाते हैं अंततः सैनिक मान जाते हैं किले के दरवाजे खोल दिए जाते हैं साथ ही सबको वेतन दिया जाता है तब जाकर यह सभी सैनिक दिल्ली की ओर रवाना होते हैं।
राजस्थान में टोंक ऐसी रियासत है जहां विद्रोह के समय महिलाओं तथा बच्चों ने भाग लिया था 1857की क्रांति का सबसे युवा शहीद हेमू कालानी था जिसको की टोंक में फांसी दी गई थी!
1857 में तात्या टोपे का राजस्थान में प्रवेश
पेशवा बाजीराव द्वितीय का कोई पुत्र नहीं था अतः बाजीराव द्वितीय ने नाना साहब को दतक पुत्र के रूप में गोद लिया था। अंग्रेजों ने नाना साहब की पेंशन बंद कर दी थी अतः नाना साहब अंग्रेजी सरकार के विरोधी बन गए थे। तात्या टोपे नाना साहब के परम स्वामी भक्त, मित्र, सेवक और सैनिक थे नाना साहब की सेना का नेतृत्व तात्या टोपे ने किया था तात्या टोपे अपने सैनिकों के लिए धन जुटाने के लिए राजस्थान में प्रवेश करते हैं तात्या टोपे का मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग था तात्या टोपे राजस्थान में तीन बार प्रवेश करते हैं तात्या टोपे राजस्थान की सभी रियासतों में जाते हैं (सिर्फ जैसलमेर नहीं जाते)।
1.पहला प्रवेश:_यह राजस्थान में 8 अगस्त 1858 को भीलवाड़ा के मांडलगढ़ से प्रवेश करते हैं (मध्य प्रदेश से राजस्थान में) तथा अगले ही दिन 9 अगस्त को यह कुवाडा (भीलवाड़ा) में रॉबर्ट्स द्वारा हार जाते है। इसके बाद यह झालावाड़ में प्रवेश करके झालावाड़ के शासक पृथ्वी सिंह को पराजित करते हैं और स्वयं झालावाड़ रियासत के शासक बन जाते हैं इसमें जनता ने भी तात्या का सहयोग किया। झालावाड़ में प्रवेश से पहले यह बूंदी राज्य में जाकर वहां से 17 लाख रुपए लूट लेते हैं इसकी जानकारी हमें लेखक सूर्यमल मिश्रण की पुस्तक वीर सतसई में मिलती है। बूंदी के शासक राम सिंह हाडा ने इस लूट का विरोध नहीं किया था जो एक तरह से तात्या को मोन सहयोग ही था। हालांकि झालावाड़ में तात्या टोपे जीत जाते हैं और झालावाड़ के शासक बन जाते हैं परंतु जयपुर के पोलिटिकल एजेंट ईडन एक सेना लेकर झालावाड़ में तात्या को हरा देते हैं और तात्या भागकर मध्य प्रदेश चला जाता है बीच में यह उदयपुर में श्रीनाथजी के मंदिर में आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
2. दूसरा प्रवेश:_दूसरी बार तात्या टोपे बांसवाड़ा में प्रवेश करके बांसवाड़ा को जीत लेते हैं। इसके बाद यह बांसवाड़ा से प्रतापगढ़ जाते हैं वहां पर यह पोलिटिकल एजेंट कर्नल रॉक से हार जाते हैं हार कर यह टोंक में चले जाते हैं जहां पर इन्हें महिलाओं और बच्चों का सहयोग मिलता है और यह टोंक में जीत जाते हैं। टोंक में जयपुर का पोलिटिकल एजेंट ईडन आ जाता है तब यह हार कर वापस मध्य प्रदेश चले जाते हैं।
3. तीसरा प्रवेश:_तात्या टोपे तीसरी बार राजस्थान में प्रवेश सीकर से करते हैं। सीकर में कर्नल होम्स की भारी सेना प्रवेश करती है इस बार तात्या टोपे पूर्ण रूप से पराजित हो जाते हैं अतः सीकर को 1857 का समाधि स्थल कहा जाता है सीकर से भागकर वापस मध्यप्रदेश लौट जाते हैं।
मानसिंह नरूका जो कि तात्या टोपे का मित्र था, तात्या को धोखे से पकड़ा देता है। तात्या को नरवर के जंगलों से पकड़ लिया जाता है और 18 अप्रैल 1859 को तात्या को फांसी दे दी जाती है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य(1857)
०बीकानेर के शासक सरदार सिंह एकमात्र ऐसा शासक था! जो कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ देने के लिए राजस्थान के बाहर भी अपनी सेना भेजता है! सरदार सिंह ने अपनी सेना को पंजाब के पोडलू तथा हरियाणा के हिसार और सिरसा में भेजा था!
०1857 की क्रांति में जयपुर के शासक रामसिंह ने अंग्रेजों की सहायता की थी! अतः राम सिंह को अंग्रेजों ने कोट काजिम का परगना दिया था! साथ ही "सितार ए हिन्द" की उपाधि भी दी!
०मेवाड़ के शासक स्वरूप सिंह ने भी अंग्रेजों की सहायता की थी! इन्होंने 40 अंग्रेजों को पिछोला झील के जग मंदिर में ठहराया था!
०बूंदी के शासक रामसिंह हाडा ने भी अंग्रेजों की सहायता की थी! हालांकि इन्होंने तात्या टोपे द्वारा की गई लूट का विरोध नहीं किया था!
०अमरचंद बांठिया:_यह मूलतः बीकानेर रियासत के निवासी थे! तथा नसीराबाद छावनी में एक सैनिक भी रहे थे,बाद में यह ग्वालियर में व्यापारी बन जाते है! इन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे को धन देकर सहायता की थी! अतः इन्हें "1857की क्रांति के भामाशाह"और "1857 क्रांति के सबसे पहले शहीद" और "राजस्थान के मंगल पांडे" भी कहा जाता है! 17 जून को लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त होती है! उसके 4 दिन बाद 22 जून को अमरचंद बांठिया को फांसी लगा दी जाती है! 1857की क्रांति में राजस्थान में सबसे पहले अमरचंद बांठिया को ही फांसी दी जाती है!
० 1857 की क्रांति के समय में ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामस्टर्न था! और भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था।
०1857:india..... भारत में क्रांति की प्रथम घटना 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी (पश्चिम बंगाल) मैं घटित हुई थी! यहां पर मंगल पांडे नाम के सैनिक ने एनफील्ड राइफल से अंग्रेज अधिकारी हडसन और डफ की हत्या कर दी थी!
०इस क्रांति को शुरुआत करने की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई थी तथा इसका प्रतीक कमल तथा चपाती को रखा गया! यह योजना लंदन में तैयार की गई थी!
०जैसे ही बैरकपुर की खबर उत्तर प्रदेश में स्थित मेरठ छावनी में पहुंची, मेरठ छावनी के सैनिकों ने 10 मई को विद्रोह कर दिया तथा 11 मई को दिल्ली पहुंच गए और मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय को 1857 की क्रांति का नेता चुन लिया!
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